आशा-कथा
सरण राई
पौराणिक कथा 'पैंडोरा के बॉक्स' से निकले अनेक दुःख-दर्द, रोग-भुखमरी के बाद अंत में निकली आशा— हर जीवित व्यक्ति का जीने का सहारा। मेरी लगभग समाप्त हो चुकी ज़िंदगी में भी आशा के सहारे ही मैं प्रतीक्षा कर रहा हूँ, प्रतीक्षा कर रहा हूँ... किसकी, किसके लिए और क्यों?
पता नहीं। लेकिन प्रतीक्षा कर रहा हूँ, प्रतीक्षा कर रहा हूँ। हर पल कोई मेरे सपने को पूरा करने आएगा! मेरे दिल में लहू, आँसू और पीप से भरे असह्य वियोग के घाव कोई ठीक करेगा! फिर से मैं सुन्दर सुंदर फूलों के साथ मुस्कुरा सकूंगा!
वह क्षण आ रहा होगा! लाने वाला कौन होगा?
प्रतीक्षारत मुझे आशा है— वह आएगा!
शायद वह और कोई नहीं बल्कि मेरा अपना समय ही होगा। धैर्यपूर्वक उसकी प्रतीक्षा करने में मदद करने वाली आशा... अब भी मिलन होगा, यह मजबूत आशा! आशा नौरंगी जीवन में जीने का सहारा बन गई है।
जीना याद रखने वालों और अकेलेपन में जी रहे लोगों के लिए सबसे बड़ी आशा-कथा है यह!
समय की प्रतीक्षा कर रहे लोगों के अंतिम क्षणों की अमर कथा भी है यह!
आशा-कथा।
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